एक ज़माना था जब भारत में लोग स्थानीय रुप से उपलब्ध मोटे अनाजों की रोटी खाना पसंद करते थे. जहाँ एक ओर उनकी प्राप्ति आसान थी वहीं, कीमतें सामान्य थीं और विकल्प के रूप में गेहूं प्रचलित नहीं था. इन मोटे अनाजों में शामिल हैं ज्वार, बाजरा, मक्का, कोदों, सावां आदि.
बदलती फ़ूड हैबिट्स के कारण तब के मोटे अनाज के उपभोक्ता अब गेहूं को ही पसंद कर रहें हैं. यहाँ तक की नयी पीढ़ी ये मानने के लिए तैयार ही नहीं है की बस कुछ दशक पूर्व ही मोटे अनाजों का प्रचलन था.
वही गेहूं बदलते दौर में विश्व स्तर पर आज तक की सबसे उंची कीमतों पर बिक रहा है. कीमतें तो मांग-आपूर्ति के नियम से ही तय होती हैं. किसी कमोडिटी पर बढ़ती निर्भरता से भी कीमतों को ईंधन मिलता है.
खाद्य सुरक्षा की मद्देनज़र भारत द्वारा गेहूं के आयात के लिए जोर-शोर से की जा रही कोशिशों से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में गेहूं की कीमतों को ऊपर धकेला है. ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना में गेहूं की फसलों के लिए मौसम को लेकर जारी चिंताओं ने ही हाज़िर से साथ ही शिकागो, पेरिस और लंदन वायदा बाज़ार में गेहूं की कीमतों को नए स्तर पर पहुंचा दिया है.
पेरिस नवंबर वायदा अपरेल के निन्नतम स्तर से अब तक दो गुना उंचा उठा चुका है.
शिकागो बोर्ड ऑफ़ ट्रेड मे दिसंबर व्हीट वायदा रिकॉड स्तर पर पहुंच गया वहीँ ऑस्ट्रेलिया के ए एस एक्स में जनवरी २००८ कॉंत्रेक्ता ने पहली बार ऑस्ट्रेलियन डॉलर ४०० प्रति तन को तोड़कर ४१० के स्तर पर बंद हुआ.
मीडिया की खबरों के अनुसार भारत ने ३८५ से ३९८ डॉलर प्रति तन (सी एंड एफ ) के भाव से गेहूं आयात के सौदे पिछले कुछ दिनों में किए हैं.
शासकीय अधिकारियों के अनुसार इस वर्ष के अंत तक भारत को खाद्य सुरक्षा के लिए ५० लाख टन गेहूं का आयात करना होगा जब कि अब तक मात्र १३ लाख टन ही आयात किया जा सका है. उँची वैश्विक कीमतों के बीच गेहूं का आयात भारत के घरेलू बाजारों को भी गरमा देगा ऎसी जानकारों को आशंका है.
हरित क्रान्ति के समय गेहूं की ही उन्नत किस्में विकसित और उपलब्ध होने के कारण गेहूं पर पर खाद्य सुरक्षा के लिए निर्भरता बढ़ती गई. मोटे अनाजों का क्षेत्र घटता गया. इस से दोनों की कीमतों पर दबाव बढ़ता गया.
भारत में नियोजित कही जाने वाले कृषि नीति दशकों से चल रही है. आज भी हालात ये हैं की गेहूं और चावल का उत्पादन बढ़ता है तो दलहन के लिए विदेशों पर निर्भरता बढ़ती है, तो कभी तिलहन को रकबे के लिए मोटे अनाजों और कपास से प्रतिस्पर्धा करना पड़ता है.
Tuesday, September 4, 2007
Saturday, September 1, 2007
सीमेंट स्टॉक्स पर लाभ की नई परत
सीमेंट कंपनियों के स्टॉक्स ‘एक बार फिर’ मजबूत रिटर्न्स की राह बतलाते हुये कई कारणों से निवेशकों के आकर्षण का केंद्र बनाते जा रहे हैं. ‘एक बार फिर’ इसलिये कहा जा रहा है क्योंकि बेहद उंचे भावों पर मिलने वाले सीमेंट स्टॉक्स की कम्पनियाँ अब भी मजबूत तो उतने ही हैं पर शेयरों के भाव सरकार से टकराव और स्टॉक मार्केट में आये हाल ही के सुधार के कारण सीमेंट स्टॉक्स की ऊपरी परत झड़ गयी है जबकि सीमेंट बैग पर नई कीमतों की परता चढ़ती जा रही है.
निर्माण और रीयल एस्टेट सेक्टर में हो रही प्रगति से उठने वाली सीमेंट की माँग से सीमेंट की कीमतों में भी सतत रुप से वृध्दि होती जा रही है. जनवरी से जुलाई २००७ के बीच सीमेंट की प्रत्येक बोरी पर औसत तौर पर २० रूपयों की वृद्धि देखी गयी है. कारण साफ है और आधारभूत आर्थिक नियमों के अनुरूप ही है. घरेलू उत्पादन क्षमता स्थानीय मांग को पूरा करने में असमर्थ रही है.
महंगी होती सीमेंट की बोरी को लेकर सरकार और सीमेंट उद्योग के बीच पूर्व में हुये टकराव के बाद सीमेंट स्टॉक्स में काफी पिट चुके थे और पिछले सप्ताह के करेक्शन ने सीमेंट सेक्टर में निवेश करने का नया अवसर दिया है.
जुलाई के तीसरे सप्ताह में ए सी सी और अल्टाटेक सीमेंट के शेयरों के भाव बी एस ई मॆं प्रति शेयर क्रमशः १११५ और ९६२ रुपयों का अस पास थे जो की वर्तमान में १०६५ और ९२० रह गए है. ये दोनों ही शेयर तेज़ी से उछाल लगाने की प्रकृति वाले बताये जाते है.
मजबूत घरेलू माँग के साथ सीमेंट के भावों को लगातार बढ़ने से रोकने केलिए सरकार फिर से कोई हस्तक्षेप कर सकती है, इस आशंका से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता. फिर चीन की सीमेंट कंपनियों के कई निर्यात प्रस्ताव भी सरकार को मिल रहे है. किन्तु चीन की सीमेंट कम्पनियों के लिए भारत के स्थानीय उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा करना बेहद कठिन होगा. गुणवत्ता के साथ ही भंडारण की समस्या को सीमेंट सेक्टर की प्राथमिकता में रखा जाता है.
मानसून के बाद पारंपरिक रुप से उठने वाली सीमेंट की माँग और इन्फ्रास्त्रक्चर पर जोर तथा रीयल एस्टेट में बद्धाती जा रही रूचि से सीमेंट सेक्टर की कंपनियों और स्टॉक्स पर लाभ की नयी परतें चद्धती रहेंगी. - १ सितंबर
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