Tuesday, September 4, 2007

गेहूं चला गगन की ओर

एक ज़माना था जब भारत में लोग स्थानीय रुप से उपलब्ध मोटे अनाजों की रोटी खाना पसंद करते थे. जहाँ एक ओर उनकी प्राप्ति आसान थी वहीं, कीमतें सामान्य थीं और विकल्प के रूप में गेहूं प्रचलित नहीं था. इन मोटे अनाजों में शामिल हैं ज्वार, बाजरा, मक्का, कोदों, सावां आदि.

बदलती फ़ूड हैबिट्स के कारण तब के मोटे अनाज के उपभोक्ता अब गेहूं को ही पसंद कर रहें हैं. यहाँ तक की नयी पीढ़ी ये मानने के लिए तैयार ही नहीं है की बस कुछ दशक पूर्व ही मोटे अनाजों का प्रचलन था.

वही गेहूं बदलते दौर में विश्व स्तर पर आज तक की सबसे उंची कीमतों पर बिक रहा है. कीमतें तो मांग-आपूर्ति के नियम से ही तय होती हैं. किसी कमोडिटी पर बढ़ती निर्भरता से भी कीमतों को ईंधन मिलता है.

खाद्य सुरक्षा की मद्देनज़र भारत द्वारा गेहूं के आयात के लिए जोर-शोर से की जा रही कोशिशों से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में गेहूं की कीमतों को ऊपर धकेला है. ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना में गेहूं की फसलों के लिए मौसम को लेकर जारी चिंताओं ने ही हाज़िर से साथ ही शिकागो, पेरिस और लंदन वायदा बाज़ार में गेहूं की कीमतों को नए स्तर पर पहुंचा दिया है.

पेरिस नवंबर वायदा अपरेल के निन्नतम स्तर से अब तक दो गुना उंचा उठा चुका है.

शिकागो बोर्ड ऑफ़ ट्रेड मे दिसंबर व्हीट वायदा रिकॉड स्तर पर पहुंच गया वहीँ ऑस्ट्रेलिया के ए एस एक्स में जनवरी २००८ कॉंत्रेक्ता ने पहली बार ऑस्ट्रेलियन डॉलर ४०० प्रति तन को तोड़कर ४१० के स्तर पर बंद हुआ.

मीडिया की खबरों के अनुसार भारत ने ३८५ से ३९८ डॉलर प्रति तन (सी एंड एफ ) के भाव से गेहूं आयात के सौदे पिछले कुछ दिनों में किए हैं.

शासकीय अधिकारियों के अनुसार इस वर्ष के अंत तक भारत को खाद्य सुरक्षा के लिए ५० लाख टन गेहूं का आयात करना होगा जब कि अब तक मात्र १३ लाख टन ही आयात किया जा सका है. उँची वैश्विक कीमतों के बीच गेहूं का आयात भारत के घरेलू बाजारों को भी गरमा देगा ऎसी जानकारों को आशंका है.

हरित क्रान्ति के समय गेहूं की ही उन्नत किस्में विकसित और उपलब्ध होने के कारण गेहूं पर पर खाद्य सुरक्षा के लिए निर्भरता बढ़ती गई. मोटे अनाजों का क्षेत्र घटता गया. इस से दोनों की कीमतों पर दबाव बढ़ता गया.

भारत में नियोजित कही जाने वाले कृषि नीति दशकों से चल रही है. आज भी हालात ये हैं की गेहूं और चावल का उत्पादन बढ़ता है तो दलहन के लिए विदेशों पर निर्भरता बढ़ती है, तो कभी तिलहन को रकबे के लिए मोटे अनाजों और कपास से प्रतिस्पर्धा करना पड़ता है.

1 comment:

sarvesh said...

bahut hi achcha likha hai.agar krishi pradhan desh me bhi anaaz ki kami hone lage to aam insan ke bhukho marne ki naubat aa jaegi.aise hi likhte rahe.