सोमवार को भारतीय शेयर बाज़ार में जो तेज़ रिकवरी आयी थी वह कितनी स्थायी होगी इस पर बाज़ार के विशेषग्यों की राय अलग-अलग है. पिछले सप्ताह भारी बिकवाली के कारण बी एस ई सेंसेक्स ने १४,००० के महत्वपूर्ण सायकोलॉजिकल लेवल को तोड़ दिया था. इसलिये यह समझाना ज़रूरी है की, क्या स्टॉक मार्केट से मंदी के सेंटीमेंट दूर हट गए हैं.
अमरीकी फेडरल रिज़र्व द्वारा डिस्काउँट रेट घटाने से अमरीकी शेयर मर्केट्स में जो रिकवरी हुयी थी उस के सेंटीमेंट से भारतीय शेयर मार्केट्स भी सोमवार को उछाले थे. किन्तु अनिश्चितता के घरेलू कारक अभी भी बने हुये हैं ओर कुछ समय पहले ही लोक सभा और राज्य सभा की बैठक इन्डो- यू एस न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर स्थगित कर दीं गयी है. कुछ बाज़ार विशेषज्ञों के अनुसार शेयर मार्केट को इस राजनीतिक अस्थिरता की कीमत चुकानी पड़ सकती है.
विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय राजनितिक अनिश्चितता से घबराना तो स्वाभाविक है किन्तु ज्यादातर लोगों का विचार है की लेफ्ट दलों की यह महज़ रूठने-मनवाने की प्रकृति का हिस्सा है. मध्यावाधि चुनाव लड़ने की चाहत अभी किसी दल की नहीं दिखती।
अमरीकी फेडरल रिज़र्व द्वारा डिस्काउँट रेट घटाने से अमरीकी शेयर मर्केट्स में जो रिकवरी हुयी थी उस के सेंटीमेंट से भारतीय शेयर मार्केट्स भी सोमवार को उछाले थे. किन्तु अनिश्चितता के घरेलू कारक अभी भी बने हुये हैं ओर कुछ समय पहले ही लोक सभा और राज्य सभा की बैठक इन्डो- यू एस न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर स्थगित कर दीं गयी है. कुछ बाज़ार विशेषज्ञों के अनुसार शेयर मार्केट को इस राजनीतिक अस्थिरता की कीमत चुकानी पड़ सकती है.
विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय राजनितिक अनिश्चितता से घबराना तो स्वाभाविक है किन्तु ज्यादातर लोगों का विचार है की लेफ्ट दलों की यह महज़ रूठने-मनवाने की प्रकृति का हिस्सा है. मध्यावाधि चुनाव लड़ने की चाहत अभी किसी दल की नहीं दिखती।
साथ ही ग्लोबलाइजेशन के दौर में इकानोमिक रिफोर्म्स रोकने के विषय में तो लेफ्ट दल भी नहीं सोच सकते या केवल सोच ही सकते हैं कुछ कर या करावा नहीं सकते. इस लिए राजनीतिक अनिश्चितता के बादल तो देर-सबेर छँट ही जायेंगे.
रही बात सोमवार को शेयर मार्केट के गैप से उंचा खुलने की तो इसे भारतीय शेयर बाजारों में तेज़ी के लौटने का चिह्न मनाना अभी जल्दीबाजी होगा. जबकी पिछले सप्ताह बाज़ार कई बार गैप से गिरकर खुला था. और आज भी नरमी के ही तेवर दिखा रहें हैं.
कई तेजड़ियो का भी मानना है की सोमवार के उछाल को आधार बनाकर लॉन्ग टर्म के लिए खरीदी नहीं करना चाहिऐ. हालांकि आगे और गिरावट आने पर छोटे-छूते लोटस मैं ही ब्लू चिप शेयरों को चुनना मे समझदारी होगी.
साथ ही, अच्छी कंपनियों के पुराने पड़े स्टॉक्स को संभाल कर रखे रहना उचित लग रहा है.
भारतीय शेयर बाज़ार मार्च २००७ के बाद जिस तेज़ी से बढ़ते चले गए थे उस के बाद अब ये बहुत बड़े तो नहीं पर बड़े करेक्शन का वोलेटाइल दौर लग रहा है जिसे भारत की घरेलू राजनितिक अनिश्चतता और ग्लोबल स्टॉक्स मर्केट्स से समर्थन मिलता दिख रहा है.
2 comments:
aapke dwara muhaiya karayi gayi jankari kafi behtareen hai.
aur fir share market to wo balaa hai,jisme kisi bhi isthiti me chhote niweshak sabse jyada prabhawit hote hain.
VERY GOOD YOU IMPROVE MY KNOLIGE
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