भारत में इस वर्ष की पहली छः माही में फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में लगभग तीन गुना बढ़कर ११.४ अरब डॉलर हो गया है. इस खबर या कहें की उपलब्धि पर हमारे कॉमर्स मिनिस्टर बेहद खुश हैं. अर्थव्यवस्था से जुडे कई लोगों का मानना है कि एक ओर तो इस से विश्व स्तर पर भारत की इनवेस्टर फ्रेंडली छवि निखरेगी तो साथ ही जीं डीं पी को ८ प्रतिशत पर या उससे उंचा उठाने के लिए वित्तीय साधन मिलते रहेंगे.
परंतु, मूलभूत प्रश्न यह उठता है कि यह ऍफ़ डीं आई भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थाई तौर पर ज्यादा लाभ पहुँचायेगा या विदेशी निवेशकों के लिए कमाई का जरिया ही बन कर रह जायेगा.
भारत में हो रही आर्थिक प्रगति से देश के अन्दरूनी क्षेत्रों को जोड़ने के लिए इन्फ्रास्ट्क्चर, कृषि क्षेत्र और कोर सेक्टर को मज़बूत बनाना होगा. यह तो सभी जानते हैं समझते हैं. किन्तु इन्ही क्षेत्रों में निवेशा की कमी को दूर नहीं किया जा सका है.
लगातार बढ़ रहे ऍफ़ डीं आई का बहुत छोटा सा अंश ही इस मूलभूत क्षेत्र में गया है. वित्तीय वर्ष २०००-२००१ से २००६-०७ तक के इकोनोमिक सर्वे मैं निरंतर यह मुद्दा उठा है की ऍफ़ डीं आई को उन क्षेत्रों के लिए आकर्षित नहीं किया जा सका है जहाँ उनकी सख्त जरूरत है. लगभग हर सर्वे में विचार भी होता है, पर नतीजा सिफर ही रहा है.
साथ ही लगातार बढ़ते ऍफ़ डीं आई के पीछे ऍफ़ डीं आई की परिभाषा को विस्तारित किया जाना भी रहा है. चीन में ऍफ़ डीं आई के बड़े आकार को देखते हुये भारत ने नए कारकों को ऍफ़ डीं आई की परिभाषा में शामिल कर लिया था जिससे वास्तविक निवेश कुछ कम ही रहता है.
साधारण व्यावसायिक बुद्धि के अनुरूप ही विदेशी निवेशक वहाँ पैसा लगाते हैं जिस सेक्टर में कम से कम सरकारी रुकावटें और अदालतों के झंझट हों. पावर सेक्टर मे निवेश को लेकर पिछले अनुभव कढ़वे ही कहे जा सकते हैं. साथ ही भू माफिया के कारण सड़क निर्माण पर तो विदेशी निवेश आना सम्भव नहीं लगता. वैसे बड़े प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण भी एक बड़ी समस्या बन कर उभरा है.
आधारभूत विकास के लिए ठोस जमीन तैयार करने की मूल जिम्मेदारी सरकारों की ही है. अतः बढ़ते ऍफ़ डीं आई पर सीना फुलाने की अपेक्षा ऍफ़ डीं आई का सच समझने की कोशिश होना चाहिए. आखिर शुतुरमुर्ग कब तक सिर छुपा सकता है.
Wednesday, August 22, 2007
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